Bose Special: हावड़ा कालका मेल का नाम अब “Netaji Express”

Bose Special Railway renames Howrah Kalka Mail as Netaji Express

आज नेताजी के 125 वीं जन्म जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जा रहा हैं। कोलकाता में हो रहे कार्यक्रम में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे हैं। उन्होंने नेताजी को नमन करते हुए कहा कि, नेताजी सुभाष, आत्मनिर्भर भारत के सपने के साथ ही सोनार बांग्ला की भी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं।जो भूमिका नेताजी ने देश की आज़ादी में निभाई थी, वही भूमिका पश्चिम बंगाल को आत्मनिर्भर भारत में निभानी है।आत्मनिर्भर भारत का नेतृत्व आत्मनिर्भर बंगाल और सोनार बांग्ला को भी करना है।

अब से हर साल 23 जनवकी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाए जाने को लेकर मोदी ने कहा कि, देश ने ये तय किया है कि अब हर साल हम नेताजी की जयंती, यानी 23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया करेंगे।हमारे नेताजी भारत के पराक्रम की प्रतिमूर्ति भी हैं और प्रेरणा भी हैं।

इससे पहले भारतीय रेलवे ने भी नेताजी के 125 वीं जन्म जयंती के अवसर पर हावड़ा से कालका तक चलने वाली हावड़ा कालका मेल का नाम बदलकर “Netaji Express” रखा है। आपको बता दे कि, भारतीय रेल में चलने वाली ट्रेनों में हावड़ा- कालका मेल सबसे पूरानी ट्रेनों में से एक हैं, जो कि, बहुत पहले से ही चलती आ रही है। सन् 1866 से चलती आ रही हावड़ा- कालका मेल को आज लगभग 150 साल से भी ज्यादा का वक्त हो गया है।

रेल मंत्री पियूष गोयल ने ट्वीटर के जरिए ट्वीट कर यह जानकारी दी हैं कि, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के साहस और वीरता ने देश को विदेशी दासता से मुक्त कराने में अहम भूमिका निभाई। पराक्रम दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्र के प्रति उनकी निस्वार्थ सेवा को सम्मान देते हुए हावड़ा-कालका मेल को अब नेताजी एक्सप्रेस के रूप में जाना जाएगा।

बतातें चलें कि, 1 जनवरी 1866 से चल रही इस ट्रेन का नाम पहले हावड़ा- पेशावर Express के नाम से जाना जाता था, फिर यह ट्रेन हावड़ा- कालका मेल के नाम से जाना जाने लगा और अब भारतीय रेलवे ने नेताजी के 125 वीं जन्म जयंती के अवसर में हावड़ा- कालका मेल का नाम “Netaji Express” कर के बोस साहब को श्रद्धांजली दी हैं।

बताया जाता हैं कि, नेताजी की मौत प्लेन क्रैश के चलते हो गई थी, लेकिन इस विषय पर आज भी सवाल उठते रहते हैं कि, क्या सच में बोस प्लेन क्रैश में मारे गए थे, या फिर उनको मार दिया गया था। अंग्रेजों से लड़ने के लिए नेताजी ने आजाद़ हिंद फौज़ की स्थापना की थी, लेकिन नेताजी के मौत के बाद आजाद हिंद फौज बस इतिहास के पन्नों में ही दर्ज़ होकर रह गई है।

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